रविवार, 9 जनवरी 2011

KAHANI ...(ABHI NAAM TAY NAHI ...)

कहानी ..(नाम अभी तय नहीं )
बहुत दिनों से सोच रहा था कुछ लिखू कुछ बताऊँ अपने समय के बारे मैं उन सबको जिनके साथ मिंस आकाश के नीचे इस धरती पर साँस लेता रहा हूँ ..कमाल है एक ही छत के नीचे एक ही फर्श पर रेह्रते हुए भी हम सब कितने अनजान है ...मैं इस अनजाने पण को तोड़ दू बता कर अपने बारे मैं ....अब समस्या ये है की बात  कहा से शुरु करू ...वहा से जहा  से मैं करना चाहता हूँ ...कुछ छिपा कर ..या जैसे जैसे याद आये बिना कुछ क छिपाए ...छिपाने पर मैं शायद अपने आपको अछा बनाकर आपके सामने पेश कर पाऊंगा ..और बिना छिपाए आपके उपर निर्भेर करूंगा की आप क्या सोचते है मेरे बारे मैं ..मगर छिपाने पर यह मेरी जीवनी का हिसा नहीं होगा ...कल्पना के साथ मैं अपनी कोई जीवनी बनानुन्गा और खुद पढकर एकांत मैं अपने को ही  कोसूँगा काश मैं अपना जीवन इस तरह से जीता जैसा मैंने यहाँ लिखा है   ...ये पश्चाताप मुझे बौना कर जाएगा ..और मैं अपने सामने खुद बौना नहीं होना चाहता हूँ ..जैसा  है वैसा ही आपको बताऊंगा जैसे जैसे याद  आएगा ...याद कर करके अपने को आपके सामने पेश करूंगा....
बात उन दिनों की है जब मैं कक्षा  छ  मैं आया ही था ...क्लास बदल गयी थी स्कूल बदल गयी थी ..शहर  वही था मगर मेरा शहर क्लास के विधार्थियों से बनता था.. उस समय वह भी अलग हो चला था ..मैं चुप चाप अपन बस्ता लेकर  क्लास मैं जाता था और चुप चाप सुनता था जो अध्यापक  पढ़ाते थे ..मैं क्लास का बहुत शान्त अच्छा विद्यार्थी था ..जो कभी अध्यापक को तकलीफ  नहीं देता था कक्षा का काम घर  से करके लाता था ...कभी शोर नहीं करता था
पढाई मैं अव्वल  आता था मगर मैं डरा डरा रहता था ..खासकर  जब क्लास से अध्यापक  चले  जाते  थे  और केवल बच्चे रहे  जाते थे  उनके सामने लगता  मुझे कुछ नहीं आता  वो तरह - तरह की बाते करते थे ,हँसते थे ,साथ  मैं टिफिन खोलकर एक दूसरे का भोजन खाते थे --साथ खेलते थे
मुझे लगता  था की मैं क्या बात करू,कैसे करू ..इसी उधेड़बुन मैं मैं अक्सर अलग एकान्त मैं अपने टिफिन खोलकर बैठा जाया करता था ...दिन यू ही बीत रहे थे ..घर  से बस्ता लादकर  स्कूल  और स्कूल से बस्ता लादकर घर तक आते हुए ..स्कूल मैं मेरे पिता स्वयं अध्यपाक थे ..इसलिए भी साथी मुझसे दूरी  बनाये रखते  थे ...जैसा मैं करता था करने देते थे ..मेरे लिए उनके मन मैं विशेस डर था ..की कही सर को पता चल गया तो कही कुछ गड़बड़ हो जाएगी .....इसलिए मेरे एकांत मैं कोई खलल नहीं डालता था .....तभी एक दिन भूगोल के सर ने कहा स्कूल का वार्षिकोत्सव मनाया जाएगा ..उसमे नाटक कविता और नाच गाने के कार्यक्रम रुय्खे जायेंगे ..सब कोम किसिस न किसी कार्यक्रम मैं हिसा  लेना है अपनी रूचि के हिसाब से नाटक कविता नाच गाने मैं कसे किसिस एक एक्टिविटी मैं अपना नाम लिखाये मैं हमेशा की तरह चुप रहा बोला नहीं ...सब ने अपनी अपनी रूचि बताई ..आखिर मैं जब मैं बचा रह गया तो सर ने मेरी तरफ देखा और कहा तुम नही बता रहे बोलो राकेश किस कार्यक्रम मैं भाग लोगे ?मैने कहा जैसा आप कहेंगे सर ..सर ने बचो की तरफ देख कर कहा देक्झा बछा कितना शालीन है ...ठीक है फिर मैं सूचि देख लूँगा जहा बचे कम होंगे उस कार्यक्रम मैं तुम्हे रख दूंगा ठीक है न ...मैने कहा जी सर .....और मैं घर लौट गया ...रात को मेरे भीतर  से किसी ने कहा पहली बार भीतर  से किसी की  आवाज आती सुनी थी  इस मारे डर गया ...आवाज हंस रही  थी ..अरे कुछ तो बताया  होता अपनी पसंद के बारे ..तुझे नाटक पसंद है क्यों नहीं कहा ?मैने ऐसे तैसे  जवाब  देकर  भीतर को चुप्प किया ....
सर ने मुझे कव्वाली  मैं रुखा था ..रोज एक कालांश  मैं कव्वाली  का अभ्यास होता था ...मेरी मासूमियत या मेरे रूप को  देखकर सर ने मुझे सबसे आगे बिठाया  बीच में  कव्वाली के प्रमुख गायक के रूप में  ...धीरे धीरे मैं अपने अंदर से बाहिर निकल रहा था ..अभ्यास चल रहा था ...कव्वाली की वेश भूषा सर ने लिखकर दी की इस तरह की वेश भूषा आप लोग लेकर आयेंगे ..दरजी को नाप दिया गया ,,वेशभूषा बन कर आ गयी ग्रांड रिहर्सल भी हो  गयी ..सब कुछ ठीक ठाक था ..कार्यक्रम का दिन आ गया ..सारे बच्चे उत्सुक थे सबका कार्यक्रम देखने के लिए ...कार्यक्रम देखने को बहुत से लोग तय्यार  थे ..मंच के परदे मैं से झाँक कर देखा मैने ...बहुत से लोग बाहिर हाल मैं बठे है ..मैं अपनी वेश भूसा पहिन कर अपने कार्यक्रम के शुरू होने का इंतिज़ार कर रह था ..कव्वाली का समय आया नाम बोला गया अब आपके सामने प्रस्तुत है कव्वाली ..कव्वाली में प्रमुख गायक है राकेश ...मेने अपना नाम सुना ..और न जाने मुझे क्या हुआ मैं उसी वेश भूसा को पहिन कर भाग छूटा  दौड़ कर स्कूल से बाहिर स्कूल से चार किलोमीटर दूर अपने घर की तरफ शर्दी की रात थुई बहुत सरदी थी मेरा मन मुझसे पूछ रह था क्या हुआ ? क्यों भाग रहे हो ?मगर में चुप था ..घर पहुँच गया सर्दी से जकड गया रात को १०५ डिग्री बुक्खार हुआ कई दिन तक बीमार रहा .......(लगातार )

शनिवार, 8 जनवरी 2011

.मित्रों के कारण संभव होता समय

बहुत सी बातें फसबूक से जुड़ने के बाद मुज्मे जुडी है ...बहुत से मित्र मिले है उनसे बहुत सीखा है ...एकांत मैं अनजान लोगो से अपने से विपरीत लिंग के लोगो से बातें करते समय हम कैसे विषय पसंद करे ...सब्दावली क्या हो ...अनजान कभी जान का बनेगा ..कभी हमारे सोच को व्यवहारिक मैं देखना चाहेगा ..तब ?कितनी  ही बातें है फ्गस बुक से जुड़ने पर कितने ही विषय है जिनको हम छूते है कभी , कभी गहन रूप से उसे जानने की प्रेरणा मिलती है .....मुझे बहुत ही मज़ा आया जो खाली समय मैं केवल बाहिर जाकर होटल मैं बैठकर मित्रों से केवल गप्पें मार कर खलास करता था अब यहाँ मेरा रचना कार्य भी होता है ..मैं रोज  लिखता हूँ
जानता हूँ की रोज लिखने पर आपकी रचना  मैं वह तेज वह आकर्षण शायद न हो मगर यहाँ आने के बाद मैने २५० के करीब कवितायेँ लिखी है जिनमे से आधी भी अगर ठीक निकल  आये तो मेरा काम व्यर्थ नहीं  गया ...इतनी तादाद मैं मैं कभी कवितायेँ नहीं लिख पाया ..न ही इतनी तादाद मैं-- मैं लोगो की प्रतिक्रियां नहीं जान पाया ..इसलिए मैं मानता हूँ की मेरे मित्रों ने मेरी बहुत होंसला अफजाई की है उनके कारन से मैं कुछ कर पा रहा हूँ .. २०१० के ख़तम होने के बाद २०११ के   शुरू दिनों मैं मैं उन सभी मित्रों का शुक्रिया अदा करता हूँ जिन्होंने मेरी कवितायेँ पढ़ी.. उन्हें पसंद  किया... अपनी बेशकीमती प्रतिक्रियां दी ...उनका भी जिन्होंने केवल पढ़ी .....मैं उन सबके कीमती समय का लेश मात्र  भी शायद न चूका पाऊं ..मगर उनके प्रति क्रितिग्य  होने के भाव से उनका अभिवादन तो मुझे करना ही चाहिए ...सभी को  यथा योग्य अभिवादन ..स्नेह .....और आशा विश्वास की आपका स्नेह यू ही मुझे मिलते रहेगा .......