शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

वर्तमान परिस्थितियों में कब अंधेरों से मुक्ति मिले ,कौन जनता है ?अँधेरा कब खलता है जब आप रौशनी के आदि हो जाते है ,दिन रात में फुर्क बंद हो जाता है महानगरों में आप देखिये रात जायदा चमकती है ,कई बार ऐसा लगता है की असली दिन to रात में ही है !हम कम सोने व् कम पढने व् कम बोलने व् कम सोचने के आदि हो गए ...सुनते है लगातार ,देखते है ,अनुभव कम करते है बस आगे क्या ...आगे क्या ?ये सोचते हुए वर्तमान को बिता देते है/हमें ठहर कर सोचना होगा हम क्या कर रहे है ....जिस समय हम कुछ कर रहे है उसे अनुभव करना होगा ..तब हम जान पाएंगे ..सही दिशा सही सोच ..!ऐसा मुझे कई बरसों से खासकर आधुनिक यंत्रों के प्रसार के बाद से ज्यादा लग रह है की हम अपने से दूर होते जा रहे है ..अणि कलाओं से अपने संगीत से अपनी किताबों से अपनी धार्मिक किताबून से ...यह भयावह है ...जरा आप भी कुछ कहिये.....